Wednesday, November 30, 2011

जिस दिन तुम आ जाते हो, सचमुच घर जैसा लगता है......

दीवारों का ये जंगल जिसमें सन्नाटा पसरा है ..
जिस दिन तुम आ जाते हो, सचमुच घर जैसा लगता है


उसका चर्चा हो तो मन में लहरें उठने लगती हैं
उसका नाम झील में गिरते कंकर जैसा लगता है

पानी, धूप, अनाज जुटा लूं ......
फिर तेरा सिंगार निहारूं

दाल खदकती, सिकती रोटी ...
इनमें ही करतार निहारूं

तेज़ धार ओ' भंवर न देखूं
मैं नदिया के पार निहारूं ......

राजस्थानी मुहावरे

https://www.facebook.com/ImRameshwar/ अकल बिना ऊंट उभाणा फिरैं । अगम् बुद्धि बाणिया पिछम् बुद्धि जाट ...बामण सपनपाट । आंध्यां की माखी रा...