Tuesday, May 22, 2012

मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यों हो

नहीं मिलना तो भला याद भी आते क्यों हो

इस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यों हो

डर तुम्हे इतना भी क्या है कहो ज़माने का
रेत पे लिख के मेरा नाम मिटाते क्यों हो

दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आएगा
आप पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यों हो

हम पर इतने किए उपकार सदा है माना
हम को हर बार मगर आप गिनाते क्यों हो

जाने किस वक्त तुम्हे इनकी ज़रूरत होगी
आप बे वक्त ही अश्कों को गिराते क्यों हो

यारी पिंजरे से ही कर ली है जब परिंदे ने
आसमां उसको खुला आप दिखाते क्यों हो

ज़िंदगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग तुम इश्क की सरकार लगाते क्यों हो

मुझको मालूम है दुश्मन नहीं हो दोस्त मेरे
मुझसे खंजर को बिना बात छुपाते क्यों हो




















इश्क मरता नहीं, है पता सदियों से
फ़िर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यों हो

राजस्थानी मुहावरे

https://www.facebook.com/ImRameshwar/ अकल बिना ऊंट उभाणा फिरैं । अगम् बुद्धि बाणिया पिछम् बुद्धि जाट ...बामण सपनपाट । आंध्यां की माखी रा...