दोस्त तो हमारे भी हज़ार हैं लेकिन,
दोस्ती निभाने वाला कोई नहीं
चाहते तो हम बहुतो को हैं लेकिन,
हमें चाहने वाला कोई नहीं
अंधेरे से भरा यह रास्ता कठिन हैं मगर,
रोशनी दिखाने वाला कोई नहीं
मंजिल तो हमारे सामने हैं ,
लेकिन हमें वहां पहुंचाने वाला कोई नहीं
आज कितना तनहा,अकेला हो गया हूँ मैं,
मेरे साथ वक्त बिताने वाला कोई नहीं
क्या यही जिंदगी की कड़वी सच्चाई हैं ???
यहाँ खुशी के गीत गुनगुनाने वाला कोई नहीं
मुश्किलों के समुन्दर में फंसी कश्ती को,
किनारे पहुचाने वाला कोई नहीं
सेहरा में फंसे किसी प्यासे को,
पानी पिलाने वाला कोई नहीं
जिंदगी की इस राह में,
साथ निभाने वाला कोई नहीं
तनहा हूँ तनहा,
तन्हाई मिटाने वाला कोई नहीं
दोस्त तो हमारे भी हज़ार हैं लेकिन,
दोस्त निभाने वाला कोई नहीं...!!
भारत के राजस्थान प्रान्त व मालवा क्षेत्र में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। इस भाषा में प्राचीन साहित्य विपुल मात्रा में लोक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक, कथा, कहानी आदि उपलब्ध हैं। इस भाषा को सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है। इस कारण शिक्षित वर्ग धीरे धीरे इस भाषा का उपयोग छोड़ रहा है, परिणामस्वरूप, यह भाषा धीरे धीरे ह्रास की और अग्रसर है। कुछ मातृभाषा प्रेमी अच्छे व्यक्ति इस भाषा को सरकारी मान्यता दिलाने के प्रयास में लगे हुए हैं।
Tuesday, October 6, 2009
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राजस्थानी मुहावरे
https://www.facebook.com/ImRameshwar/ अकल बिना ऊंट उभाणा फिरैं । अगम् बुद्धि बाणिया पिछम् बुद्धि जाट ...बामण सपनपाट । आंध्यां की माखी रा...
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कब मैं, मैं से तुम हो गयी, तुम्हारी यादों में गुम हो गयी । इस पर भी तुमने मेरी आरजू को न पहचाना, तुमने मुझे तुम नहीं..आप ही जाना ।
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दीवारों का ये जंगल जिसमें सन्नाटा पसरा है .. जिस दिन तुम आ जाते हो, सचमुच घर जैसा लगता है उसका चर्चा हो तो मन में लहरें उठने लगती हैं ...
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1 comment:
yaar aisa keh kar mujhe sarminda mat kar.
anyway tum kavi bnne ki achi poshis kr rhe ho.
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